Saturday 7 December 2013

आखिर कब तक चलेगा यह सब???



मित्रों वर्षों से हम भारतवासी इसी हीन भावना में जी रहे हैं कि क्या हम सदियों से भूखे, नंगे व पिछड़े हुए थे? यदि ऐसा था तो हमे विश्वगुरु व सोने की चिड़िया जैसी उपाधियाँ कैसे मिल गयीं?
यहाँ तो एक प्रकार का कन्फ्यूज़न हो गया| क्या यह सच है कि हम सच में विश्वगुरु थे? क्या यह सच है कि हम सच में सोने की चिड़िया थे?

इस प्रकार कि उधेड़बुन में हमे जीना पड़ रहा है| इस विषय पर राष्ट्रवादी विचारधारा के धनि महान वैज्ञानिक स्व. श्री राजीव दीक्षित का एक व्याख्यान सुना था| यह लेख उसी व्याख्यान से प्रेरित है| अत: आप भी राजिव भाई के इस ज्ञान का लाभ उठाइये|

शीर्षक आपको बाद में समझाऊंगा किन्तु लेख से पहले आपको एक सच्ची कहानी सुनाना चाहता हूँ|
हमारे देश में एक महान वैज्ञानिक हुए हैं प्रो. श्री जगदीश चन्द्र बोस भारत को और हम भारत वासियों को उन पर बहुत गर्व है| इन्होने सबसे पहले अपने शोध से यह निष्कर्ष निकाला कि मानव की तरह पेड़ पौधों में भी भावनाएं होती हैं| वे भी हमारी तरह हँसते खिलखिलाते और रोते हैं| उन्हें भी सुख दुःख का अनुभव होता है| और श्री बोस के इस अनुसंधान की तरह इसकी कहानी भी बड़ी दिलचस्प है|

श्री बोस ने शोध के लिये कुछ गमले खरीदे और उनमे कुछ पौधे लगाए| अब इन्होने गमलों को दो भागों में बांटकर आधे घर के एक कोने में तथा शेष को किसी अन्य कोने में रख दिया| दोनों को नियमित रूप से पानी दिया, खाद डाली| किन्तु एक भाग को श्री बोस रोज़ गालियाँ देते कि तुम बेकार हो, निकम्मे हो, बदसूरत हो, किसी काम के नहीं हो, तुम धरती पर बोझ हो, तुम्हे तो मर जाना चाहिए
आदि आदि| और दूसरे भाग को रोज़ प्यार से पुचकारते, उनकी तारीफ़ करते, उनके सम्मान में गाना गाते|
मित्रों देखने से यह घटना साधारण सी लगती है| किन्तु इसका प्रभाव यह हुआ कि जिन पौधों को श्री बोस ने गालियाँ दी वे मुरझा गए और जिनकी तारीफ़ की वे खिले खिले रहे, पुष्प भी अच्छे दिए|

तो मित्रों इस साधारण सी घटना से बोस ने यह सिद्ध कर दिया कि किस प्रकार से गालियाँ खाने के बाद पेड़ पौधे नष्ट हो गए| अर्थात उनमे भी भावनाएं हैं|

जब निर्जीव से दिखने वाले सजीव पेड़ पौधों पर अपमान का इतना दुष्प्रभाव पड़ता है तो मनुष्य सजीव सदेह का क्या होता होगा?वही होता है जो आज हमारे भारत देश का हो रहा है|

५००-७०० वर्षों से हमें यही सिखाया पढाया जा रहा है कि तुम बेकार हो, खराब हो, तुम जंगली हो, तुम तो हमेशा लड़ते रहते हो, तुम्हारे अन्दर सभ्यता नहीं है, तुम्हारी कोई संस्कृती नहीं है, तुम्हारा कोई दर्शन नहीं है, तुम्हारे पास कोई गौरवशाली इतिहास नहीं है, तुम्हारे पास कोई ज्ञान विज्ञान नहीं है आदि आदि| अंग्रेजों के एक एक अधिकारी भारत आते गए और भारत व भारत वासियों को कोसते गए| अंग्रजों से पहले ये गालियाँ हमें फ्रांसीसी देते थे, और फ्रांसीसियों से पहले ये गालियाँ हमें पुर्तगालियों ने दीं| इसी क्रम में लॉर्ड मैकॉले का भी भारत में आगमन हुआ| किन्तु मैकॉले की नीति कुछ अलग थी| उसका विचार था कि एक एक अंग्रेज़ अधिकारी भारत वासियों को कब तक कोसता रहेगा? कुछ ऐसी स्थाईव्यवस्था करनी होगी कि हमेशा भारत वासी खुद को नीचा ही देखें और हीन भावना से ग्रसित रहें| इसलिए उसने जो व्यवस्था दी उसका नाम रखा Education System.सारी व्यवस्था उसने ऐसी रचीकि भारत वासियों को केवल वह सब कुछ पढ़ाया जाए जिससे वे हमेशा गुलाम ही रहें| और उन्हें अपने धर्म संस्कृती से घृणा हो जाए| इस शिक्षा में हमें यहाँ तक पढ़ाया कि भारत वासी सदियों से गौमांस का भक्षण कर रहे हैं| अब आप ही सोचे यदि भारत वासी सदियों से गाय का मांस खाते थे तो आज के हिन्दू ऐसा क्यों नहीं करते? और इनके द्वारा दी गयी सबसे गन्दी गाली यह है कि हम भारत वासी आर्य बाहर से आये थे| आर्यों ने भारत के मूल द्रविड़ों पर आक्रमण करके उन्हें दक्षिण तक खदेड़ दिया और सम्पूर्ण भारत पर अपना कब्ज़ा ज़मा लिया| और हमारे देश के वामपंथी चिन्तक आज भी इसे सच साबित करने के प्रयास में लगे हैं| इतिहास में हमें यही पढ़ाया गया कि कैसे एक राजा ने दूसरे राजा पर आक्रमण किया| इतिहास में केवल राजा ही राजा हैं प्रजा नदारद है, हमारे ऋषि मुनि नदारद हैं| और राजाओं की भी बुराइयां ही हैं अच्छाइयां गायब हैं| आप जरा सोचे कि अगर इतिहास में केवल युद्ध ही हुए तो भारत तो हज़ार साल पहले ही ख़त्म हो गया होता| और राजा भी कौन कौन से गजनी, तुगलक, ऐबक, लोदी, तैमूर, बाबर, अकबर, सिकंदर जो कि भारतीय थे ही नहीं| राजा विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त, महाराणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान गायब हैं| इनका ज़िक्र तो इनके आक्रान्ता के सम्बन्ध में आता है| जैसे सिकंदर की कहानी में चन्द्रगुप्त का नाम है| चन्द्रगुप्त का कोई इतिहास नहीं पढ़ाया गया| और यह सब आज तक हमारे पाठ्यक्रमों में है|

इसी प्रकार अर्थशास्त्र का विषय है| आज भी अर्थशास्त्र में पीएचडी करने वाले बड़े बड़े विद्वान् विदेशी अर्थशास्त्रियों को ही पढ़ते हैं| भारत का सबसे बड़ा अर्थशास्त्री चाणक्य तो कही है ही नहीं| उनका एक भी सूत्र किसी स्कूल में भी बच्चों को नहीं पढ़ाया जाता| जबकि उनसे बड़ा अर्थशास्त्री तो पूरी दुनिया में कोई नहीं हुआ|

दर्शन शास्त्र में भी हमें भुला दिया गया| आज भी बड़े बड़े दर्शन शास्त्री केवल अरस्तु, सुकरात, देकार्ते को ही पढ़ रहे हैं जिनका दर्शन भारत के अनुसार जीरो है| अरस्तु और सुकरात का तो ये कहना था कि स्त्री के शरीर में आत्मा नहीं होती वह किसी वस्तु के समान ही है, जिसे जब चाहा बदला जा सकता है| आपको पता होगा १९५० तक अमरीका और यूरोप के देशों में स्त्री को वोट देने का अधिकार नहीं था| आज से २५.३० वर्ष पहले तक अमरीका और यूरोप में स्त्री को बैंक अकाउंट खोलने का अधिकार नहीं था| साथ ही साथ अदालत में तीन स्त्रियों की गवाही एक पुरुष के बराबर मानी जाती थी| इसी कारण वहां सैकड़ों वर्षों तक नारी मुक्ति आन्दोलन चला तब कहीं जाकर आज वहां स्त्रियों को कुछ अधिकार मिले हैं| जबकि भारत में नारी को सम्मान का दर्जा दिया गया| हमारे भारत में किसी विवाहित स्त्री को श्रीमति कहते हैं| कितना सुन्दर शब्द है ये श्रीमती, जिसमे दो देवियों का निवास है| श्री होती है लक्ष्मी और मति यानी बुद्धि अर्थात सरस्वती| हम औरत में लक्ष्मी और सरस्वती का निवास मानते हैं| किन्तु फिर भी हमारे प्राचीन आचार्य दर्शन शास्त्र से गायब हैं| हमारा दर्शन तो यह कहता है कि पुरुष को सभी शक्तियां अपनी माँ के गर्भ से मिलती हैं और हम शिक्षा ले रहे हैं उस आदमी की जो यह मानता है कि नारी में आत्मा ही नहीं है|

चिकत्सा के क्षेत्र में महर्षि चरक, शुषुक, धन्वन्तरी, शारंगधर, पातंजलि सब गायब हैं और पता नहीं कौन कौन से विदेशी डॉक्टर के नाम हमें रटाये जाते हैं| आयुर्वेद जो न केवल चिकित्सा शास्त्र है अपितु जीवन शास्त्र है, वह आज पता नहीं चिकित्सा क्षेत्र में कौनसे पायदान पर आता है?

इसी प्रकार हमारी गणित पर भी विदेशी कब्ज़ा हो गया| इसके लिए राजिव भाई ने एक बहुत अच्छा उदाहरण दिया है, अत: उसे ही यहाँ रख रहा हूँ|

बच्चों को स्कूल में गणित में घटाना सिखाते समय जो प्रश्न दिया जाता है वह कुछ इस प्रकार होता है-
पापा ने तुम्हे दस रुपये दिए, जिसमे से पांच रुपये की तुमने चॉकलेट खा ली तो बताओ तुम्हारे पास कितने रुपये बचे?
यानी बच्चों को घटाना सिखाते समय चॉकलेट कम्पनी का उपभोगता बनाया जा रहा है| हमारी अपनी शिक्षा पद्धति में यदि घटाना सिखाया जाता तो प्रश्न कुछ इस प्रकार का होता-
पिताजी ने तुम्हे दस रुपये दिए जिसमे से पांच रुपये तुमने किसी गरीब लाचार को दान कर दिए तो बताओ तुम्हारे पास कितने रुपये बचे?
जब बच्चा बार बार इस प्रकार के सवालों के हल ढूंढेगा तो उसके दिमाग में कभी न कभी यह प्रश्न जरूर आएगा कि दान क्या होता है, दान क्यों करना चाहिए, दान किसे करना चाहिए आदि आदि? इस प्रकार बच्चे को दान का महत्त्व पता चलेगा| किन्तु चॉकलेट खरीदते समय बच्चा यही सोचेगा कि चॉकलेट कौनसी खरीदूं कैडबरी या नेस्ले?

अर्थ साफ़ है यह शिक्षा पद्धति हमें नागरिक नहीं बना रही बल्कि किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी का उपभोगता बना रही है| और उच्च शिक्षा के द्वारा हमें किसी विदेशी यूनिवर्सिटी का उपभोगता बनाया जा रहा है या किसी वेदेशी कम्पनी का नौकर|

मैंने अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई में कभी यह नहीं सीखा कि कैसे मै अपने तकनीकी ज्ञान से भारत के कुछ काम आ सकूँ, बल्कि यह सीखा कि कैसे मै किसीMulti National Company में नौकरी पा सकूँ, या किसी विदेशी यूनिवर्सिटी में दाखिला ले सकूँ|
तो मित्रों सदियों से हमें वही सब पढ़ाया गया कि हम कितने अज्ञानी हैं, हमें तो कुछ आता जाता ही नहीं था, ये तो भला हो अंग्रेजों का कि इन्होने हमें ज्ञान दिया, हमें आगे बढ़ना सिखाया आदि आदि| यही विचार ले कर लॉर्ड मैकॉले भारत आया जिसे तो यह विश्वास था कि स्त्री में आत्मा नहीं होती और वह हमें शिक्षा देने चल पड़ा| हम भारत वासी जो यह मानते हैं कि नारी में देवी का वास है उसे मैकॉले की शिक्षा की क्या आवश्यकता है? हमारे प्राचीन ऋषियों ने तो यह कहा था कि दुनिया में सबसे पवित्र नारी है और पुरुष में पवित्रता इसलिए आती है क्यों कि उसने नारी के गर्भ से जन्म लिया है| जो शिक्षा मुझे मेरी माँ से जोडती है उस शिक्षा को छोड़कर मुझे एक ऐसी शिक्षा अपनानी पड़ी जिसे मेरी माँ समझती भी नहीं| हम तो हमारे देश को भी भारत माता कहते हैं| किन्तु हमें उस व्यक्ति की शिक्षा को अपनाना पड़ा जो यह मानता है कि मेरी माँ में आत्मा ही नहीं है| और एक ऐसी शिक्षा पद्धति जो हमें नारी को पब, डिस्को और बीयर बार में ले जाना सिखा रही है, क्यों?

आज़ादी से पहले यदि यह सब चलता तो हम मानते भी कि ये अंग्रेजों की नीति है, किन्तु आज क्यों हम इस शिक्षा को ढो रहे हैं जो हमें हमारे भारत वासी होने पर ही हीन भावना से ग्रसित कर रही है? आखिर कब तक चलेगा यह सब?

इसका उत्तर हम क्या दें, जब हमारे माननीय(?), सम्माननीय(?), आदरणीय(?), पूजनीय(?) प्रधानमन्त्री श्री श्री...१००००००००००००८(?) मन्दमोहन सिंह २००४ में प्रथम बार भारत के प्रधानमन्त्री बनने के बाद ब्रिटेन की ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में जाकर यह कहें कि एक इंग्लैण्ड ही है, जिसने हमें बनाया| हम तो सदियों से भूखे, नंगे थे| अंग्रेजों ने ही हमें अज्ञानता के अन्धकार से निकालकर ज्ञान का प्रकाश दिखाया|

तो मित्रों अपने मन से यह भ्रम निकाल दीजिये, कि आप के पूर्वज अज्ञानी थे| आपके पूर्वजों ने तो पूरे विश्व को ज्ञान दिया है| आपके पूर्वजों ने पूरे विश्व को सभ्यता दी है| आपके पूर्वजों ने पूरे विश्व को खाने लायक अन्न दिया| आपके पूर्वजों ने पूरे विश्व को पहनने के लिए कपडा दिया है|

हम सच में सोने की चिड़िया थे| हम सच में विश्वगुरु थे| और यह उपाधियाँ हम आज फिर से पा सकते हैं|
बाबा रामदेव अब वही खोया हुआ स्वाभिमान पुन: भारत को दिलाने आए हैं| किन्तु जब तक राजनैतिक सत्ताओं पर ये विदेशी बैठे हैं, तब तक मन के भीतर से यही आह निकलती है कि "आखिर कब तक चलेगा यह सब?"

तुम मुझे गाय दो, मैं तुम्हे भारत दूंगा



मित्रों शीर्षक पढ़कर चौंकिए मत| मैं कोई नेताजी सुभाष चन्द्र बोस जैसा नारा लगाकर उनके समकक्ष बनने का प्रयास नहीं कर रहा| उनके समकक्ष बनना तो दूर यदि उनके अभियान का योद्धा मात्र भी बन सका तो स्वयं को भाग्यशाली समझूंगा|

अभी जो शीर्षक मैंने दिया, वह एक अटल सत्य है| यदि भारत निर्माण करना है तो गाय को बचाना होगा| एक भारतीय गाय ही काफी है सम्पूर्ण भारत की अर्थव्यवस्था चलाने के लिए| किसी बहुराष्ट्रीय कंपनी की आवश्यकता ही नहीं है| ये कम्पनियां भारत बनाने नहीं, भारत को लूटने आई हैं|

खैर अब मुद्दे पर आते हैं|मैं कह रहा था कि मुझे भारत निर्माण के लिए केवल भारतीय गाय चाहिए| यदि गायों का कत्लेआम भारत में रोक दिया जाए तो यह देश स्वत: ही उन्नति की ओर अग्रसर होने लगेगा| मैं दावे के साथ कहता हूँ कि केवल दस वर्ष का समय चाहि
ए| दस वर्ष पश्चात भारतीय अर्थव्यवस्था सबसे ऊपर होगी| आज की सभी तथाकथित महाशक्तियां भारत के आगे घुटने टेके खड़ी होंगी|

सबसे पहले तो हम यह जानते ही हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है| कृषि ही भारत की आय का मुख्य स्त्रोत है| ऐसी अवस्था में किसान ही भारत की रीढ़ की हड्डी समझा जाना चाहिए| और गाय किसान की सबसे अच्छी साथी है| गाय के बिना किसान व भारतीय कृषि अधूरी है| किन्तु वर्तमान परिस्थितियों में किसान व गाय दोनों की स्थिति हमारे भारतीय समाज में दयनीय है|

एक समय वह भी था जब भारतीय किसान कृषि के क्षेत्र में पूरे विश्व में सर्वोपरि था| इसका कारण केवल गाय है| भारतीय गाय के गोबर से बनी खाद ही कृषि के लिए सबसे उपयुक्त साधन है| गाय का गोबर किसान के लिए भगवान् द्वारा प्रदत एक वरदान है| खेती के लिए भारतीय गाय का गोबर अमृत है| इसी अमृत के कारण भारत भूमि सहस्त्रों वर्षों से सोना उगलती आ रही है|

किन्तु हरित क्रान्ति के नाम पर सन १९६० से १९८५ तक रासायनिक खेती द्वारा भारतीय कृषि को नष्ट कर दिया गया| हरित क्रान्ति की शुरुआत भारत की खेती को उन्नत व उत्तम बनाने के लिए की गयी थी| किन्तु इसे शुरू करने वाले आज किस निष्कर्ष तक पहुंचे होंगे?

रासायनिक खेती ने धरती की उर्वरता शक्ति को घटा कर इसे बाँझ बना दिया| साथ ही साथ इसके द्वारा प्राप्त फसलों के सेवन से शरीर न केवल कई जटिल बिमारियों की चपेट में आया बल्कि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी घटी है|

वहीँ दूसरी ओर गाय के गोबर से बनी खाद से हमारे देश में हज़ारों वर्षों से खेती हो रही थी| इसका परिणाम तो आप भी जानते ही होंगे| किन्तु पिछले कुछ दशकों में ही हमने अपनी भारत माँ को रासायनिक खेती द्वारा बाँझ बना डाला|

इसी प्रकार खेतों में कीटनाशक के रूप में भी गोबर व गौ मूत्र के उपयोग से उत्तम परिणाम वर्षों से प्राप्त किये जाते रहे| गाय के गोबर में गौ मूत्र, नीम, धतुरा, आक आदि के पत्तों को मिलाकर बनाए गए कीटनाशक द्वारा खेतों को किसी भी प्रकार के कीड़ों से बचाया जा सकता है| वर्षों से हमारे भारतीय किसान यही करते आए हैं| किन्तु आज का किसान तो बेचारा रासायनिक कीटनाशक का छिडकाव करते हुए स्वयं ही अपने प्राण गँवा देता है| कई बार किसान कीटनाशकों की चपेट में आकर मर जाते हैं| ज़रा सोचिये कि जब ये कीटनाशक इतने खतरनाक हैं तो पिछले कई दशकों से हमारी धरती इन्हें कैसे झेल रही होगी? और इन कीटनाशकों से पैदा हुई फसलें जब भोजन के रूप में हमारी थाली में आती हैं तो क्या हाल करती होंगी हमारा?

केवल चालीस करोड़ गौवंश के गोबर व मूत्र से भारत में चौरासी लाख एकड़ भूमि को उपजाऊ बनाया जा सकता है| किन्तु रासायनिक खेती के कारण आज भारत में १९० लाख किलो गोबर के लाभ से हम भारतवासी वंचित हो रहे हैं|

किसी भी खेत की जुताई करते समय चार से पांच इंच की जुताई के लिए बैलों द्वारा अधिकतम पांच होर्स पावर शक्ति की आवश्यकता होती है| किन्तु वहीँ ट्रैक्टर द्वारा इसी जुताई में ४० से ५० होर्स पावर के ट्रैक्टर की आवश्यकता होती है| अब ट्रैक्टर व बैल की कीमत के अंतर को बहुत सरलता से समझा जा सकता है| वहीँ ट्रैक्टर में काम आने वाले डीज़ल आदि का खर्चा अलग है| इसके अतिरिक्त भूमि के पोषक जीवाणू ट्रैक्टर की गर्मी से व उसके नीचे दबकर ही मर जाते हैं|

इसके अलावा खेतों की सींचाई के लिए बैलों के द्वारा चालित पम्पिंग सेट और जनरेटर से ऊर्जा की आपूर्ति भी सफलता पूर्वक हो रही है| इससे अतिरिक्त बाह्य ऊर्जा में होने वाला व्यय भी बच गया|यदि भारतीय कृषि में गौवंश का योगदान मिले तो आज भी भारत भूमि सोना उगल सकती है| सदियों तक भारत को सोने की चिड़िया बनाने में गाय का ही योगदान रहा है|

ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में भी पशुधन का उपयोग लिया जा सकता है| आज भारत में विधुत ऊर्जा उत्पादन का करीब ६७ प्रतिशत थर्मल पावर से, २७ प्रतिशत जलविधुत से, ४ प्रतिशत परमाणु ऊर्जा से व २ प्रतिशत पवन ऊर्जा के द्वारा हो रहा है|

थर्मल पावर प्लांट में विधुत उत्पादन के लिए कोयला, पैट्रोल, डीज़ल व प्राकृतिक गैस का उपयोग किया जाता है| इसके उपयोग से कार्बन डाई आक्साइड का उत्सर्जन वातावरण में हो रहा है| जिससे वातावरण के दूषित होने से भिन्न भिन्न प्रकार के रोगों का जन्म अलग से हो रहा है|

जलविधुत परियोजनाएं अधिकतर भूकंपीय क्षेत्रों में होने के कारण यहाँ भी खतरे की घंटी है| ऐसे में किसी भी बाँध का टूट जाना करोड़ों लोगों को प्रभावित कर सकता है| टिहरी बाँध के टूटने से चालीस करोड़ लोग प्रभावित होंगे|

परमाणु ऊर्जा के उपयोग का एक भयंकर परिणाम तो हम अभी कुछ समय पहले जापान में देख ही चुके हैं| परमाणु विकिरणों के दुष्प्रभाव को कई दशकों बाद भी देखा जाता है|

जबकि यहाँ भी गौवंश का योगदान लिया जा सकता है| स्व. श्री राजीब भाई दीक्षित अपने पूरे जीवन भर इस अनुसन्धान में लगे रहे व सफल भी हुए| उनके द्वारा बनाए गए गोबर गैस संयत्र से गोबर गैस को सिलेंडरों में भरकर उसे ईंधन के रूप में उपयोग लिया जा सकता है| आज एक साधारण कार को पैट्रोल से चलाने में करीब चार रुपये प्रति किलोमीटर के हिसाब से खर्च होता है| जिस प्रकार से पैट्रोल, डीज़ल के दाम बढ़ रहे हैं, यह खर्च आगे और भी बढेगा| वहीँ दूसरी और गोबर गैस के उपयोग से उसी कार को ३५ से ४० पैसे प्रति किलोमीटर के हिसाब से चलाया जा सकता है|


आईआईटी दिल्ली ने कानपुर गोशाला और जयपुर गोशाला अनुसंधान केन्द्रों के द्वारा एक किलो सी .एन.जी. से २५ से ४० किलोमीटर एवरेज दे रही तीन गाड़ियां चलाई जा रही है|रसोई गैस सिलेंडरों पर भी यह बायोगैस बहुत कारगर सिद्ध हुई है| सरकार की भ्रष्ट नीतियों के चलते आज रसोई गैस के दाम भी आसमान तक पहुँच गए हैं, जबकि गोबर गैस से एक सिलेंडर का खर्च केवल ५० से ७० रुपये तक आँका गया है|

इसी बायोगैस से अब हैलीकॉप्टर भी जल्द ही चलाया जा सकेगा| हम इस अनुसन्धान में अब सफलता के बहुत करीब हैं|गोबर गैस प्लांट से करीब सात करोड़ टन लकड़ी बचाई जा सकती है, जिससे करीब साढ़े तीन करोड़ पेड़ों को जीवन दान दिया जा सकता है| साथ ही करीब तीन करोड़ टन उत्सर्जित कार्बन डाई आक्साइड को भी रोका जा सकता है|

पैट्रोल, डीज़ल, कोयला व गैस तो सब प्राकृतिक स्त्रोत हैं, किन्तु यह बायोगैस तो कभी न समाप्त होने वाला स्त्रोत है| जब तक गौवंश है, तब तक हमें यह ऊर्जा मिलती रहेगी|हाल ही में कानपुर की एक गौशाला ने एक ऐसा सीऍफ़एल बल्ब बनाया है जो बैटरी से चलता है| इस बैटरी को चार्ज करने के लिए गौमूत्र की आवश्यकता पड़ती है| आधा लीटर गौमूत्र से २८ घंटे तक सीऍफ़एल जलता रहेगा|यदि सरकार चाहे तो इस क्षेत्र में सकारात्मक कदम उठाकर इससे भारी मुनाफा कमाया जा सकता है|

इसके अतिरिक्त चिकित्सा के क्षेत्र में तो भारतीय गाय के योगदान को कोई झुठला ही नहीं सकता| हम भारतीय गाय को ऐसे ही माता नहीं कहते| इस पशु में वह ममता है जो हमारी माँ में है|भारतीय गाय की रीढ़ की हड्डी में सूर्यकेतु नाड़ी होती है| सूर्य के संपर्क में आने पर यह स्वर्ण का उत्पादन करती है| गाय के शरीर से उत्पन्न यह सोना गाय के दूध, मूत्र व गोबर में भी होता है|

अक्सर ह्रदय रोगियों को घी न खाने की सलाह डॉक्टर देते रहते हैं| साथ ही एलोपैथी में ह्रदय रोगियों को दवाई में सोना ही कैप्सूल के रूप में दिया जाता है| यह चिकित्सा अत्यंत महँगी साबित होती है|जबकि आयुर्वेद में ह्रदय रोगियों को भारतीय गाय के दूध से बना शुद्ध घी खाने की सलाह दी जाती है| इस घी में विद्यमान स्वर्ण के कारण ही गाय का दूध व घी अमृत के समान हैं|गाय के दूध का प्रतिदिन सेवन अनेकों बीमारियों से दूर रखता है|

गौ मूत्र से बनी औषधियों से कैंसर, ब्लडप्रेशर, अर्थराइटिस, सवाईकल हड्डी सम्बंधित रोगों का उपचार भी संभव है| ऐसा कोई रोग नहीं है, जिसका इलाज पंचगव्य से न किया जा सके|यहाँ तक कि हवन में प्रयुक्त होने वाले गाय के घी व गोबर से निकलने वाले धुंए से प्रदुषण जनित रोगों से बचा जा सकता है| हवन से निकलने वाली गैसों में इथीलीन आक्साइड, प्रोपीलीन आक्साइड व फॉर्मएल्डीहाइड गैसे प्रमुख हैं|

इथीलीन आक्साईड गैस जीवाणु रोधक होने पर आजकल आपरेशन थियेटर से लेकर जीवन रक्षक औषधियों के निर्माण में प्रयोग मे लायी जा रही है। वही प्रोपीलीन आक्साइड गैस का प्रयोग कृत्रिम वर्षा कराने के लिए प्रयोग में लाया जा रहा है|साथ ही गाय के दूध से रेडियो एक्टिव विकिरणों से होने वाले रोगों से भी बचा जा सकता है|यदि सरकार वैदिक शिक्षा पर कुछ शोध करे तो दवाइयों पर होने वाले करीब दो लाख पचास हज़ार करोड़ के खर्चे से छुटकारा पाया जा सकता है|

अब आप ही बताइये कहने को तो गाय केवल एक जानवर है, किन्तु इतने कमाल का एक जानवर क्या हमें ऐसे ही बूचडखानों में तड़पती मौत मरने के लिए छोड़ देना चाहिए?कुछ तो कारण है जो हज़ारों वर्षों से हम भारतीय गाय को अपनी माँ कहते आए हैं|भारत निर्माण में गाय के अतुलनीय योगदान को देखते हुए शीर्षक की सार्थकता में मुझे यही शीर्षक उचित लगा|

पढ़िए साध्वी प्रज्ञा का न्यायाधीश को लिखा एक मार्मिक पत्र


सोनिया कांग्रेस के दरबारी महासचिव दिग्विजय सिंह ने एक जुमला उछाला 'भगवा आतंकवाद', तो सोनिया की अध्यक्षता वाली संप्रग सरकार ने उसे सिद्ध करने के लिए कुछ षड्यंत्र रचे। आतंकवाद विरोधी दस्ते (एंटी टेरेरिस्ट स्क्वाड-एटीएस) ने सरकार के इशारे पर समझौता एक्सप्रेस विस्फोट, मालेगांव विस्फोट, मक्का मस्जिद में धमाका आदि मामले दोबारा खंगाले और झूठी कहानी, झूठे सुबूत गढ़कर कुछ हिन्दुओं को पकड़ा, उनमें स्वामी असीमानंद और साध्वी प्रज्ञा सिंह प्रमुख हैं। 

हालांकि 5 साल बाद भी इनमें से किसी के भी खिलाफ पुख्ता जानकारी नहीं दी गई है, पर विचाराधीन कैदी बनाकर प्रताड़ित किया जा रहा है, ताकि 'भगवा आतंकवाद' के नाम पर कुछ भगवा वेशधारी चेहरों को प्रस्तुत किया जा सके। मालेगांव विस्फोट के संदर्भ में गिरफ्तार साध्वी प्रज्ञा सिंह इन दिनों बहुत बीमार हैं और उन्होंने जेल से ही न्यायाधीश महोदय को जो मार्मिक पत्र लिखा, उसे यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं, पूरी सच्चाई आपके समक्ष स्वत: ही आ जाएगी।




मा. न्यायाधीश महोदय,
उच्च न्यायालय, मुम्बई (महाराष्ट्र)
द्वारा- श्रीमान अधीक्षक, केन्द्रीय कारागृह भोपाल (म.प्र.)
विषय- स्वास्थ्य विषय से सम्बन्धित।

महोदय,

मैं, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर मालेगांव विस्फोट प्रकरण (2008) में विचाराधीन कैदी हूं और अभी एक अन्य प्रकरण में मध्य प्रदेश की भोपाल स्थित केन्द्रीय जेल में हूं। आज दिनांक 16 जनवरी, 2013 को जो सज्जन मुझसे जेल भेंट करने आये उन्होंने आपके द्वारा आदेशित पत्र मुझे दिखाया, जिसमें आपने मेरी अस्वस्थता के उपचार हेतु उचित स्थान के चयन का निर्णय करने को कहा है। महोदय, मैं यह जानकर कि आपने मेरे स्वास्थ्य की संवेदनापूर्वक चिंता कर आदेश दिया, मैं आपकी बहुत-बहुत आभारी हूं। आपके आदेश से ही मुझे यह हौसला मिला है कि मैं आपसे अपनी मन:स्थिति व्यक्त करूं। मुझे लगता है कि आप मेरी सारी शारीरिक स्थिति, मानसिक स्थिति और विवशता को भली-भांति समझ सकेंगे। अत: मैं आपसे अपनी बात संक्षेप में कहती हूं, जो इस प्रकार है-

0 मैं बचपन से ही सत्यनिष्ठ, कर्तव्यनिष्ठ, सिद्वान्तवादी व राष्ट्रभक्त हूं। मेरे पिता ने मेरा निर्माण इन्हीं संस्कारों में गढ़कर किया है। मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता व देश की संभ्रांत नागरिक हूं।

0 मैं जनवरी, 2007 से संन्यासी हूं।

0 अक्टूबर, 2008 में मुझे सूरत से एटीएस इंस्पेक्टर सावंत का फोन आया कि आप कानून की मदद करिए, सूरत आ जाइये, मुझे आपसे एक 'बाइक' के बारे में जानकारी चाहिए। मैं कानून को मदद पहुंचाने व अपने कर्तव्य को निभाने हेतु 10 अक्टूबर सुबह सूरत पहुंची।

0 इं. सावंत ने अपने साथियों सहित अपने बड़े साहब के समक्ष पेश कर देने को कहकर 16 अक्टूबर की रात्रि को मुझे मुम्बई लाये। मुम्बई की काला चौकी में मुझे 13 दिनों तक गैरकानूनी रुप से रखा और भयानक शारीरिक, मानसिक व अश्लील प्रताड़नाएं दीं।

0 एक स्त्री होने पर भी मुझे बड़े-बड़े पुलिस अधिकारियों ने सामूहिक रुप से गोल घेरे में घेर कर बेल्टों से पीटा, पटका, गालियां दीं तथा अश्लील सी.डी. सुनवाई। उनका (एटीएस का) यह क्रम दिन-रात चलता रहा।

0 फिर पता नहीं क्यों मुझे राजपूत होटल ले गये और अत्यधिक प्रताड़ित किया जिससे मेरे पेट के पास फेफड़े की झिल्ली फट गयी। मेरे बेहोश हो जाने व सांस न आने पर मुझे एक प्राइवेट हास्पिटल  'सुश्रुशा' में आक्सीजन पर रखा गया। इसी हास्पिटल में झिल्ली फटने की रपट है। आपके आदेश पर वह रपट आपके समक्ष उपस्थित की जायेगी। दो दिन सुश्रुशा हास्पिटल में रखकर गुप्त रूप से फिर हास्पिटल बदल दिया और एक अन्य प्राइवेट हास्पिटल में आक्सीजन पर ही रखा गया। इस प्रकार 5 दिनों तक मुझे आक्सीजन पर रखा गया।

0 थोड़ा आराम मिलने पर पुन: काला चौकी के मि. सावंत के आफिस रूम में रखा गया तथा पुन: अश्लील गालियां, प्रताड़नाएं दी जाती रहीं।

0 फिर मुझे यहीं से रात्रि को लेकर नासिक गये, फिर 13 दिन बाद गिरफ्तार दिखाया गया। इतने दिनों मैंने कुछ खाया नहीं तथा प्रताड़नाओं और मुंह बांधकर रखे जाने से मैं बहुत ही विक्षिप्त अवस्था में आ गई थी।

0 इस बीच बेहोशी की अवस्था में मेरा भगवा वस्त्र उतार कर मुझे सलवार-सूट पहनाया गया।

0 बिना न्यायालय की अनुमति के, गैरकानूनी तरीके से मेरा नाकर्ो पौलिग्राफी व ब्रेन मैपिंग किया गया। फिर गिरफ्तारी के पश्चात पुन: ये सभी टेस्ट दोबारा किये गये।

0 जज साहब, इतनी अमानुषिक प्रताड़नाएं दिए जाने के कारण मुझे गम्भीर रूप से रीढ़ की हड्डी की तकलीफ व अन्य तकलीफें होने से मैं चलने, उठने, बैठने में असमर्थ हूं। इनकी (एटीएस की) प्रताड़नाओं से मानसिक रुप से भी बहुत ही परेशान हूंं। अब सहनशीलता की भी कमी हो रही है।

0 कारागृह में मुझे यह पांचवा वर्ष चल रहा है। इस कारागृही जीवन में भी मेरी सात्विकता नष्ट करने के लिये मुम्बई जेल में मेरे भोजन में अण्डा दिया गया। इस विपरीत वातावरण से मुझे अब और भी कोई गम्भीर बीमारियां हो गई हैं। अब मैं कैंसर (ब्रेस्ट) के रोग से भी ग्रस्त हो गयी हूं। परिणामस्वरुप मैं अब डाक्टरों के द्वारा बताया गया भोजन करने में भी असमर्थ हूं।

0 इन्ही तकलीफों के चलते मुझे इलाज के लिए, टेस्ट के लिये न्यायालय के आदेश पर मुम्बई व नासिक के अस्पताल भेजा जाता था, किन्तु वहां के पुलिसकर्मी जे.जे. हास्पिटल अथवा किसी सरकारी हास्पिटल अथवा आयुर्वेदिक हास्पिटल ले जाते, जहां न्यायालय का आदेश देखकर मुझे 'एडमिट' तो किया जाता था, कागजी कार्रवाई की जाती, किन्तु मेरा उपचार नहीं किया जाता था।

0 2009 में एक बार मेरा ब्रेस्ट का आपरेशन किया गया, 2010 में पुन: वहां तकलीफ हुई। मैं मकोका हटने पर नासिक के कारागृह में थी। वहां मुझे जिला अस्पताल भेजा गया। न्यायालय के आदेश पर एक टीम बनाई गई जिसने अपनी रपट में पुन:. आपरेशन की सलाह दी। किन्तु मकोका लगने पर मुझे पुन: मुम्बई ले जाया गया।

0  अभी मैं मार्च, 2012 से म.प्र. की भोपाल जेल में हूं। यहां मेरा स्वास्थ्य बिगड़ने पर जब अस्पताल भेजा गया तो वहां भी पुलिस वालों ने जबरन पेरशान किया। जेल प्रशासन इलाज करवाना चाहता था, किन्तु जो सुरक्षा अधिकारी मेरे साथ थे, वे अमानवीय गैरकानूनी व्यवहार करते रहे। अत: मुझे अस्पताल से बिना उपचार के वापस आना पड़ा। ऐसा कई बार हुआ।

0 ऐसा अभी तक निरन्तर होता आ रहा है। मैं इलाज लेना चाहती थी, टेस्ट भी करवाने अस्पताल गयी, किन्तु सरकारी रवैया, कोर्ट, कानून, पुलिस के झंझटों से डरकर कोई उपचार ही नहीं करना चाहता। अब मैं पांच वर्षों से इन सभी परेशानियों को झेलते-झेलते थक गई हूं।

0 महोदय मैंने अब यही तय किया कि संन्यासी जीवन के इस शरीर को तमाम बीमारियों से अब योग-प्राणायाम से जितने दिन चल जाये, उतना ठीक है, किन्तु अब जेल अभिरक्षा में रहते हुए कोई इलाज नहीं करवाऊंगी। महोदय, मैंने यह निर्णय स्वेच्छा से नहीं लिया है। कारागृही जीवन, तमाम प्रतिबन्धों के परिणामस्वरुप तनाव से शरीर पर विपरीत असर होने के चलते विवश होकर ही मैंने यह निर्णय लिया है। आप इसे अन्यथा न लें और मेरी भावना व परिस्थिति को समझें।

0 महोदय मैं एक संन्यासी हूं। हमारा त्यागपूर्ण संयमी जीवन होता है। स्वतंत्र प्रकृति से स्वतंत्र वातावरण में ही यह संभव होता है। 5 वर्षों से मेरी प्रकृति, दिनचर्या, मर्यादा, मेरे जीवन मूल्यों के विपरीत मुझे अकारण कारागृह में रखा गया है। अत: इन प्रताड़नाओं व अमानवीयता से एक संन्यासी का संवेदनशील जीवन असम्भव है।

0  मैंने सभी विपरीत परिस्थितियों से अपने को अलग करने का प्रयास कर इन शारीरिक कष्टों को सहते हुए अपने ठाकुर (ईश्वर) के स्मरण में ही अपने को सीमित कर दिया है। जितने दिन जिऊंगी, ठीक है, किन्तु उचित उपचार व जांच से दूर रहूंगी। यदि स्वतंत्र हुई तो अपनी पंसद का उपचार, बिना किसी बंधन के करवा कर इस शरीर को स्वस्थ करने तथा संन्यासी जीवन पद्धति से मन को ठीक कर कुछ समय जी सकूंगी।

0 महोदय आपसे अनुरोध है कि आप मेरे तथा भारतीय संस्कृति में एक संन्यासी जीवन की पद्धति व इसके विपरीत दुष्परिणामों को अनुभूत करेंगे। मेरे निर्णय को उचित समझकर मेरे निवेदन पर ध्यान देंगे। यदि मेरे लिये कानून के अन्तर्गत स्वतंत्रता (जमानत) का प्रावधान है, क्योंकि में अभी संशयित (विचारधीन) हूं, तो आप अपने विवेकीय मापदण्डों पर मुझे जमानत देने की कृपा करें।

0 मेरे द्वारा लिखे गये प्रत्येक कारण के लिखित सबूत हैं, यदि आपका आदेश हुआ तो वह सभी सबूत आपके समक्ष (मेरी रपट सहित) प्रस्तुत की जा सकती है। मैं कानून की धाराएं नहीं जानती हूं। बस इतना है कि मैंने कोई अपराध नहीं किया है। मैंने हमेशा एक राष्ट्रभक्तिपूर्ण, संवैधानिक, नियमानुसार जीवन जिया है, अभी भी जी रही हूं। आज तक मेरा कोई आपराधिक रिकार्ड नहीं है। मुझे मुम्बई एटीएस ने जबरन इस प्रकरण में फंसाया है।

निवेदक
प्रज्ञा सिंह

साभार : पाञ्चजन्य

इस्‍लाम भी हिन्‍दू-माता का ही पुत्र है - फिरदोसी बाबा


हिन्दू-धर्म ही संसार में सबसे प्राचीन धर्म है’- यह एकप्रसिद्ध और प्रत्यक्ष सच्चाई है। कोई भी इतिहासवेत्ता आजतक इससे अधिक प्राचीन किसी धर्म की खोज नहीं कर सकेहैं। इससे यही सिद्ध होता है कि हिन्दू-धर्म ही सब धर्मों कामूल उद्गम-स्थान है। सब धर्मों ने किसी-न-किसी अंश मेंहिन्दू मां का ही दुग्धामृत पान किया है। जैसा कि गोस्वामीतुलसीदास जी का वचन है- बुध किसान सर बेद निजमते खेत सब सींच। अर्थात् वेद एक सरोवर है, जिसमेंसे (भिन्न-भिन्न मत-मतान्तरों के समर्थक) पण्डितरूपीकिसान लोग अपने-अपने मत (सम्प्रदाय) रूपी खेत कोसींचते रहते हैं।
उक्त सिद्धान्तानुसार इस्लाम को भी हिन्दू माता का ही पुत्र मानना पड़ता है। वैसे तो अनेकों इस प्रकार के ऐतिहासिक प्रमाण हैं, जिनके बलपर सिद्ध किया जा सकता है कि इस्लाम का आधार ही हिन्दू-धर्म है; परन्तु विस्तार से इस विषयको न उठाकर यहाँ केवल इतना ही बताना चाहता हूँ कि मूलत. हिन्दू-धर्म और इस्लाम में वस्तुत. कोई भेद नहीं है, दोनों एक ही हैं। इस्लाम के द्वारा अरबी सभ्यता का अनुकरण होने के कारण ही दोनों परस्पर भिन्न हो गये हैं।
धर्मानुकूल संस्कृति भारत में ही है
वास्तविक सिद्धान्त तो यही है कि किसी देश की सभ्यता और संस्कृति पूर्णरूप से धर्मानुकूल ही हो; परन्तु भारत के अतिरिक्त और किसी भी देश में इस सिद्धान्त का अनुसरण नहीं किया जाता। वरन् इसके विपरीत धर्म को ही अपने देश की प्रचलित सभ्यता के ढाँचे में ढालने का प्रयत्न किया जाता है। यदि किसी धर्म प्रवर्तक ने सभ्यता को धर्मानुकूल बनाने का प्रयत्न किया भी तो उसके जीवन का अन्त होते ही उसके अनुयायियों ने अपने देश की प्रचलित सभ्यता की अन्धी प्रीति के प्रभाव से धर्म को ही प्रचलित सभ्यता का दासानुदास बना दिया। श्री मुहम्मद जी के ज्योति-में जोत समाने के पश्चात् इस्लाम के साथ भी यही बर्ताव किया गया। केवल इसी कारण हिन्दू-धर्म और इस्लाम में भारी अन्तर जान पड़ता है।
प्राचीन अरबी सभ्यता में युद्ध वृत्ति को विशेष सम्मान प्राप्त है। इसी कारण जब अरब के जनसाधारण के चित्त और मस्तिष्क ने इस्लाम के नवीन सिद्धान्तों को सहन नहीं किया, तब वे उसे खड्ग और बाहुबल से दबाने पर उद्यत हो गये- जिसका परिणाम यह हुआ कि कई बार टाल जाने और लड़ने-भिड़ने से बचे रहने की इच्छा होते हुए भी इस्लाम में युद्ध का प्रवेश हो गया, परन्तु उसका नाम ‘जहाद फी सबीलउल्ला’ अर्थात् ‘ईश्वरी मार्ग के लिये प्रयत्न’ रखकर उसे राग-द्वेष की बुराइयों से शुद्ध कर दिया गया।
गंगा के दहाने में डूबा
श्रीमुहम्मद जी के स्वर्ग गमन के पश्चात् जब इस्लाम अरबी सभ्यता का अनुयायी हो गया, तब जेहाद ही मुसलमानों का विशेष कर्तव्य मान लिया गया। इसी अन्ध-श्रद्धा और विश्वास के प्रभाव में अरबों ने ईरान और अफगानिस्तान को अपनी धुन में मुस्लिम बना लेने के पश्चात् भारत पर भी धावा बोल दिया। यहाँ अरबों को शारीरिक विजय तो अवश्य प्राप्त हुई, परन्तु धार्मिक रूप में नवीन इस्लाम की प्राचीन इस्लाम से टक्कर हुई, जो अधिकपक्का और सहस्रों शताब्दियों से संस्कृत होने के कारण अधिक मजा हुआ था। अत. हिन्दू धर्म के युक्ति-युक्त सिद्धान्तों के सामने इस्लाम को पराजय प्राप्त हुई। इसी सत्य को श्रीयुत मौलाना अल्ताफ हुसैन हालीजी ने इन शब्दों में स्वीकार किया है-
वह दीने हिजाजीका बेबाक बेड़ा।
निशां जिसका अक्‍साए आलम में पहुंचा।।
मजाहम हुआ कोई खतरा न जिसका।
न अम्‍मांमें ठटका न कुल्‍जममें झिझका।।
किये पै सिपर जिसने सातों समुंदर।
वह डूबा दहाने में गंगा के आकर।।
अर्थात् अरब देश का वह निडर बेड़ा, जिसकी ध्वजा विश्वभर में फहरा चुकी थी, किसी प्रकार का भय जिसका मार्ग न रोक सका था, जो अरब और बलोचिस्तान के मध्य वाली अम्मानामी खाड़ी में भी नहीं रुका था और लालसागर में भी नहीं झिझका था, जिसने सातों समुद्र अपनी ढाल के नीचे कर लिये थे, वह श्रीगंगा जी के दहाने में आकर डूब गया। ‘मुसद्दए हाली’ नामक प्रसिद्ध काव्य, जिसमें उक्त पंक्तियाँ लिखी हैं, आज तक सर्वप्रशंसनीय माना जाता है। इन पंक्तियों पर किसी ने कभी भी आक्षेप नहीं किया। यह इस बात का प्रसिद्ध प्रमाण है कि इस सत्य को सभी मुस्लिम स्वीकार करते हैं, परन्तु मेरे विचार में वह बेड़ा डूबा नहीं, वरन् उसने स्नानार्थ डुबकी लगायी थी। तब अरबी सभ्यता का मल दूर करके भारतीय सभ्यता में रँग जाने के कारण वह पहचाना नहीं गया।
क्योंकि आचार-व्यवहार-अनुसार तो हिन्दू-धर्म और इस्लाम में कोई भेद ही नहीं था। अरबी सभ्यता यहाँ आकर उस पर भोंड़ी सी दीखने लगी; क्योंकि हिन्दू-धर्म और हिन्दू-सभ्यता एक दूसरे के अनुकूल हैं और यहाँ सैद्धान्तिक विचारों, विश्वासों और आचरण में अनुकूलता होने के आधार पर ही किसी व्यक्ति का सम्मान किया जाता है। ‍‍‍ अत: इस्लाम पर हिन्दुओं के धर्मांचरण का इतना प्रबल प्रभाव पड़ा कि सर्वसाधारण के आचार-व्यवहार में कोई भेदभावन रहा। यदि विशिष्ट मुस्लिमों के हृदय भी पक्षपात से अलग हो जाते तो अरबी और फारसी भाषाओं के स्थान पर हिन्दी और संस्कृत को इस्लामी विचार का साधन बना लिया जाता। अरबी संस्कृति को ही इस्लाम न मान लिया जाता तथा भारतीय इतिहास के माथे पर हिन्दू-मुस्लिम-दंगों का भोंड़ा कल. न लगा होता; क्योंकि वास्तव में दोनों एक ही तो हैं।
इस्लाम में उपनिषदों के सिद्धांत
मौलाना रूम की मसनवीको पढ़ देखो, गीता और उपनिषदों के सिद्धान्तों के कोष भरे हुए मिलेंगे, संतमत के सम्बन्ध में उनका कथन है-
मिल्‍लते इश्‍क अज हमां मिल्‍लत जुदास्‍त।
आशिकां रा मजहबों मिल्‍लत खुदास्‍त।
अर्थात् ‘भक्तिमार्ग सब सम्प्रदायों से भिन्न है। भक्तों का सम्प्रदाय और पन्थ तो भगवान् ही है।’ संतजन सत्य को देश, काल और बोली के बन्धनों से मुक्त मानते हैं। ‘समझेका मत एक है, का पंडित, का शेख॥’ वे सत्य को प्रकट करना चाहते हैं। इसी से जनसाधारण की बोली में ही वाणी कहते हैं। जैसे गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा है-
का भाषा, का संस्‍कृत, प्रेम चाहिये सांच।
काम जु आवै कामरी का लै करै कमाच।।
इसी सिद्धान्त के अनुसार मुसलमान संतों ने भी कुरआनी शिक्षा को जनता की बोली अर्थात हिन्दी भाषा के दोहों और भजनों के रूप में वर्णन किया, तो उसे सबने अपनाया। क्योंकि उनके द्वारा ही दोनों धर्मों की एकता सिद्ध हो गयी थी। बाबा फरीद के दोहों को ‘श्रीगुरु ग्रन्थ साहब’- जैसी सर्व-पूज्य धार्मिक पुस्तक में स्थान प्राप्त हुआ। निजामुद्दीन औलिया ने स्पष्ट कहा है-
मीसाक के रोज अल्लाह का मुझसे हिन्दी जबान में हमकलाम हुआ था। अर्थात् ‘मुझे संसार में भेजने से पूर्व जिस दिन भगवान् ने मुझसे वचन लिया था, तो मुझसे हिन्दी बोली में ही वार्तालाप किया था।’ मलिक मुहम्मद जायसी, बुल्लेशाह इत्यादि अनेकों मुसलमान संतों ने हिन्दी में ही इस्लामी सत्य का प्रचार किया, जो आज भी वैसा ही लोकप्रिय है। अरबी भाषा के पक्षपातियों ने ईरान इत्यादि मुस्लिम देशों में भी संतों की वाणी के विरुद्ध आन्दोलन किया था।
मौलवियों की करतूतें
भारतीय मुसलमान संतों पर भी मौलवियों ने कुफ्रके फतवे (नास्तिक होने की व्यवस्थाएँ) लगाये। इसी खींचातानी का परिणाम यह हुआ कि वास्तविक इस्लाम न जाने कहाँ भाग गया।
इसका कारण यह था कि तअस्सुब (पक्षपात) ने मौलवी लोगों को अंधा कर दिया था। इसकी व्याख्या मौलाना हाली से सुनिये। वह कहते हैं -
हमें वाइजोंने यह तालीम दी है।
कि जो काम दीनी है या दुनयवी है।।
मुखालिफ की रीस उसमें करनी बुरी है।
निशां गैरते दीने हकका यही है।
न ठीक उसकी हरगिज कोई बात समझो।
वह दिनको कहे दिन तो तुम रात समझो।।
अर्थात् ‘हमें उपदेशकों ने यह शिक्षा दी है कि धार्मिक अथवा सांसारिक-कोई भी काम हो, उसमें विरोधियों का अनुकरण करना बहुत बुरा है। सत्य धर्म की लाजका यही चि. है कि विरोधी की किसी बात को भी सत्य न समझो। यदि वह दिन को दिन कहे तो तुम उसे रात समझो।’ इसके आगे कहा गया है-
गुनाहों से होते हो गोया मुबर्रा।
मुखालिफ पै करते हो जब तुम तबर्रा।।
‘जब तुम विरोधी को गाली देते हो (सताते हो) तो मानो अपने अपराधों से शुद्ध होते हो।‘
बस, मौलवियों के इन्हीं सिद्धान्तों और बर्तावों ने हिन्दू मुसलमानों को पराया बनाने का प्रयत्न किया, जिसका भयानक परिणाम आज विद्यमान है। ‍‍‍‍‍दूय दी णनहीं तो, हिन्-धर्म ने कट्टर मुसलमान बादशाहों के राज् में भीजनसाधारण पर ऐसा प्रभाव डाला था कि मुसलमान लेखक अपनी हिन्-रचनाओं में ‘श्रीगणेशाय नम:’, ‘श्रीरामजी सहाय’, ‘श्री सरस्वती जी,’ ‘श्री राधा जी’, ‘श्री कृष् जी सहाय’, आदि मंगलाचरण लिखने को कुफ्र (नास्तिकता) नहीं समझते थे। प्रमाण के लिये अहमद का ‘सामुद्रिक’, याकूबखाँ का ‘रसभूषण’ आदि किताबें देखी जा सकती है। अरबी के पक्षपातियों की दृष्टि में भले ही यह पाप हो, परन्तु ‘कुरआन’ की आज्ञा से इसमें विरोध नहीं है।
इस्लाम चमक उठा था
कुरआन की इन्हीं आज्ञाओं को मानकर ईरान के एक कवि ने म.लाचरण का यह पद पढ़ा है –
बनाम आंकिह कि ऊ नामे नदारद।
बहर नामे के रबानी सर बरारद।।
अर्थात् उसके नाम से आरम्‍भ करता हूं कि जिसका कोई नाम नहीं है, अत: जिस नाम से पुकारो-काम चल जाता है।
‍‍‍दू‍यदि पक्षपाती और कट्टर मौलवी ऊधम न मचाते, संसार स्वर्ग बन जाता। क्योंकि हिन्-धर्म के पवित्र प्रभाव से, मंजकर इस्लाम चमक उठा था। सत्याग्रही और न्यायशील मुसलमानों ने तो मुसलमान शब्द को भी ‘हिन्दू’ शब्द का समर्थक ही जाना। इसी कारण से सर सय्यद अहमद खाँ ने कई बार अपने भाषणों में हिन्दुओं से प्रार्थना की कि उन्हें हिन्दू मान लिया जाय, जिस पर उन्हें अपने लिये काफिर की उपाधि ग्रहण करनी पड़ी।
यदि दोनों धर्मों में सैद्धान्तिक एकता सिद्ध न की जाय, तो निबन्ध अधूरा रह जायगा; परन्तु वास्तव में इसकी आवश्यकता ही नहीं, क्योंकि जैसे हिन्दू-धर्म किसी एक सम्प्रदाय का नाम नहीं है, वरन् मानवधर्म के अनुयायी सभी सम्प्रदाय हिन्दू कहलाते हैं-
कारण कि मानव-धर्मका ही एक नाम हिन्दू-धर्म भी है, और ईश्वर के अस्तित्व को न मानने वाले आर्य समाज जैसे सम्प्रदाय भी हिन्दू ही कहलाते हैं- उसी प्रकार इस्लाम में भी अनेकों सम्प्रदाय विद्यमान हैं। खुदाकी हस्ती (ईश्वर का अस्तित्व) न मानने वाला नेचरी फिरका भी मुसलमान ही कहलाता है।
इस्लाम और अद्वैत
पक्षपाती और कट्टर मुसलमानों को जिस तौहीद (अद्वैत) पर सबसे अधिक अभिमान है और जिसे इस्लाम की ही विशेषता माना जाता है, उसके विषय में जब हम कुरआन की यह आज्ञा देखते हैं-
‍‍‍‍ना‍ कुल आमन् बिल्लाहि माउंजिल अलेना व मा उंजिल अला इब्राहीम व इस्माईल व इस्हाक व यअकूब वालस्वातिव मा ऊती मूसा व ईसा वलबीय्यून मिंर्रबिहिम ला नुफर्रिकु बैन अहदिम्मिन्हुम व नह्न लहु मुस्लिमून।
अर्थात् (ऐ मेरे दूत! लोगों से ) कह दो कि हमने ईश्वर पर विश्वास कर लिया और जो (पुस्तक अथवा वाणी) हमपर उतरी है, उसपर और जो ग्रन्थ इब्राहीम, इस्माईल, इसहाक, याकूब और उसकी सन्तानों पर उतरी, उसपर भी तथा मूसा, ईसा और (इनके अतिरिक्त) अन्य नबियों (भगवान् से वार्तालाप करने वालों) पर उनके भगवान् की ओर से उतरी हुई उन सब पर (भी विश्वास रखते हैं) और उन (पुस्तकों तथा नबियों) में से किसी में भेद-भाव नहीं रखते और हम उसी एक (भगवान्) को मानते हैं। और इस आज्ञा के अनुसार तौहीद को समझने के लिये हिन्दू-सद्ग्रन्थों का अध्ययन करते हैं, तो जान पड़ता है कि मौलवी लोग तौहीद को जानते ही नहीं। यदि जानते होते हो स्वर्गीय स्वामी श्री श्रद्धानन्द, महाशय राजपाल इत्यादि व्यक्तियों की हत्या का फतवा (व्यवस्था) न देते और न पाकिस्तान ही बनता।
पंजाब और बंगाल का घृणित हत्याकाण्ड भी देखने में न आता। जहाँ तक मैंने खोज की है, मौलवियाना इस्लाम में यह तौहीद ‘दिया’ लेकर ढूँढ़ने से भी नहीं मिलती, हाँ, संतों के इस्लाम में इसी का नाम तौहीद है।
मिआजार कसे व हर चिन्‍ह खाही कुन।
कि दर तरीकते मन गैर अजीं गुनाहे नेस्‍त।।
अर्थात् ‘किसी को दु.ख देने के अतिरिक्त और तेरे जी में जो कुछ भी आये, कर; क्योंकि मेरे धर्म में इससे बढ़कर और कोई पाप ही नहीं।’
दिल बदस्‍तारद कि ह‍ज्जि अकबरस्‍त।
अज हजारां कआबा यक दिल बेहतरस्‍त।।
अर्थात्- दूसरों के दिल को अपने वश में कर लो, यही काबाकी परम यात्रा है; क्योंकि सहस्रों काबों से एक दिल ही उत्तम है। कुरआन में भगवान् ने बार-बार कहा है-
इनल्लाह ला यहुब्बुल्जालिमीन (अथवा मुफ्सिदीनइ त्यादि) अर्थात् भगवान् अत्याचारियों (अथवा फिसादियों) से प्रसन्न नहीं होता।
एक हदीस में भी आया है-
सब प्राणी भगवान् के कुटुम्बी हैं। अत. प्राणियों से भगवान् के लिये ही अच्छा बर्ताव करो- जैसा अच्छा कि अपने कुटुम्ब वालों से करते हो। इस इस्लाम और हिन्दू-धर्म में कोई भेद नहीं।
(साभार-कल्‍याण)

आधे लीटर गोमूत्र से 28 घंटे सीफलएल बल्ब जलाया जा सकता है


सिर्फ आधे लीटर गोमूत्र से आप 28 घंटे न केवल एक सीफलएल बल्बजला सकते हैं, बल्कि मोबाइल भी चार्ज कर सकते हैं। भौती गोशाला,कानपुर ने गोज्योति नाम से ऐसा लैंप विकसित किया है जिसमें आधालीटर गोमूत्र से एक सप्ताह तक झोपड़ी रोशन की जा सकती है। खासबात यह है कि इस संयंत्र के उपयोग में अन्य किसी प्रकार का कोई खर्चनहीं होता।भौती गोशाला में एक ऐसी बैट्री तैयार की गई है जो सिर्फगोमूत्र से चार्ज होती है। छह वोल्ट की इस बैट्री में आधा लीटर गोमूत्रडाल देते हैं, इसके बाद सीफल का बैट्री से कनेक्शन कर देते हैं।

सुविधानुसार स्विच भी लगा देते हैं। स्विच ऑन करते ही सीफल बल्ब जल उठती है। इस बैट्री से एक अन्य लिंक निकालकर मोबाइल चार्जर भी लगा दिया जाता है। गोशाला सोसाइटी के उपाध्यक्ष एवं पूर्व सांसद प्रेम मनोहर के अनुसार, एक गोज्योति बनाने की लागत करीब डेढ़ हजार रूपये आती है। बल्क में बनाने पर यह लागत और भी घट सकती है। आधे लीटर गोमूत्र से 28 घंटे तक बल्ब जल सकता है।गोमूत्र के इस अनुंसधान ने आई.आई.टी और एचबीटीआई जैसे उच्च तकनीकी संस्थान भी हतप्रभ हैं।

उन्होंने भी माना कि गोमूत्र में वह शक्ति है, जिससे बल्ब जल सकता है। गोशाला की इस अनोखी गोज्योति को देखकर अभी गुजरात के एक स्वयंसेवी संगठन ने दो हजार लैंप तैयार करने का ऑर्डर भी दिया है। इसका अति पिछड़े गैर विद्युतीकृत ग्रामीण इलाकों में वितरण किया जाएगा। ध्यान रहे कि कानपुर गोशाला सोसायटी ने बीते वर्ष ही गोबर से सीएनजी तैयार की थी, जिससे सफलतापूर्वक कार चलायी जाती है। गोशाला सोसायटी के सदस्य सुरेश गुप्ता बताते हैं कि अगर सरकार गो-ज्योति को प्रोत्साहित करे तो देश की वे झोपड़ियां भी सहजता से रोशन हो सकती हैं जहां अभी बिजली की कल्पना भी नहीं की जा सकती।

इंटरनेट पर संस्कृत के साधन

कंप्यूटर के युग में 'संस्कृत भाषा' की महत्ता एक बार फिर से परिभाषित हो रही है । भाषा विज्ञान के क्षेत्र में अनुसंधान करने वाले विश्व के कई विशेषज्ञ देवभाषा संस्कृत का सम्मान विश्व की सबसे वैज्ञानिक भाषा के रूप में करते हैं । कंप्यूटर के संचालन के लिए संस्कृत सर्वश्रेठ भाषा है ये भी एक स्थापित तथ्य है । प्राचीनतम शास्त्रों और सिध्दातों की अभिव्यक्ति का माध्यम रही ये भाषा नई तकनीक और विज्ञान को भी एक नई दिशा देने में समर्थ हैं  |

ये  कुछ वेबसाइट और ब्लॉग पते हैं जहाँ पर संस्कृतप्रेमी अपने आप को संस्कृतमय कर सकते हैं




आशा  है , आपको मेरा प्रयास पसन्द आएगा |

हो न्याय अगर तो आधा दो ,और उसमे भी यदि बाधा हो

सर्वप्रथम  तो न्यायलय के इस निर्णय में लोगों को विसंगतियां नजर आ रही हैं |क्या कवल इस लिए की यह निर्णय हिन्दुओं के पक्ष में आया है ? मैं अधिवक्ता तो नहीं हूँ अतः मुझे न्यायिक सूक्ष्मताओं का ज्ञान नहीं है परन्तु साड़ों से चली आ रही आस्थाएं क्या स्वयं ही इस बात साक्ष्य नहीं हैं ? क्या उस अस्जिद का नाम १९४० तक "मस्जिदे - जन्मस्थान " होना प्रमाण नहीं है ?क्या निकट भूत में बामियान का कार्य इस्लामिक आक्रान्ताओं के मूल चरित्र को नहीं दर्शाता है? इसके अतिरिक्त जब अयोध्या का मुस्लोमों के लिए कोई विशिस्ट धार्मिक महत्त्व नहीं है तो क्या अयोध्या हिन्दुओं को देना विसंगति है ?

दूसरी बात ,अगर सामाजिक सद्भाव बना हुआ है तो मैंने ऐसा लेख क्यूँ लिखा है ? कहाँ है सामाजिक सदभाव ?इस निर्णय के आने से पहले जो लोग सामाजिक सदभाव बनाये रखने की अपील कर रहे थे वो ही अब इस निर्णय में लोकतंत्र की पराजय देखने लगे हैं |और शान्ति ..............कहीं ते तूफान के पहले वाली तो नहीं है ?सरे कट्टर पंथी मुस्लिम ब्ल्लोगारों ने इस निर्णय की आलोचना करना प्रारंभ कर दिया है | और सरे प्रगतीशील  और धर्मनिरपेक्ष लोग भी धीरे धीरे इसके विरोध  में उतरने लगे हैं |पाकिस्तान तक में इस पर मुस्लिम एकत्रित होने लगे हैं | वैसे जो लोग सोचते हैं  की हिन्दू मुस्लिम सदभाव जैसी कोई चीज वास्तविक दुनिया में होती है तो हमे कुछ उदहारण दें जब मुस्लिमो के अन्य धर्मावलम्बियों  से अधिक शक्तिशाली होने के पश्चात भी शांति रही हो ? पूरे  एशिया और यूरोप में ५०० वर्ष तक बहने वाली खून की नदियाँ ही क्या वो सदभाव  हैं जिसके सम्मान की अपेक्षा हमसे की जा रही है ?

तीसरी बात , अयोध्या में मंदिर और मस्जिद  दोनों बनाने की बात कह रहे हैं | कह रहे हैं की कुछ स्थान मुस्लिमों को बाबरी मस्जिद के लिए भी दे दिया जाये | ठीक है हम दे देंगे और देश के हर हिन्दू को हम मनाएंगे और उस मस्जिद के निर्माण के लिए चंदा एकत्रित करके हाँ भी हम देंगे | भव्य मस्जिद बनेगी | बस आप लोग हमे काबा के बगल में ५० ५० का स्थान दिला दीजिये मंदिर बनाने के लिए | उस नगर में तो अमुस्लिमों का प्रवेश भी वर्जित है तो हम अयोध्या में उनको   त्रण  की नोक के बरबा बोमी भी क्यूँ दें |

कुछ लोग कहेंगे की ऐसा करके हम उन मुस्लिमों  का दिल जीत सकते हैं| तो आप उनका दिल अपने घर का एक तिहाई , राजघाट का एक तिहाई और तीन मोरती भवन का एक तिहाई देकर क्यूँ नहीं जीत लेते हैं ? इतिहास हमे सिखाता है की हम इतिहास  से कुछ नहीं सीखते हैं और इसी लिए अपने आप को इतिहास दोहराता है | इतिहास साक्षी है इस बात का की मुस्लिमों  का दिल जीतना संभव नहीं है क्यूँकी दिल तो उनका जीता जायेगा जिनके पास दिल होगा |तो क्या हमे पुनः वाही भूलें करनी चाहियें या इतिहास से कुछ सीखते हुए इस बार कुछ अलग करना चाहिए |

हमे लेशमात्र भी आश्चर्य नहीं होगा अगर एक तिहाई हिस्से को रख ने के बाद मुस्लिमों में "हस के लिया है एक तिहाई लड़ कर लेंगे दो तिहाई "की गोंज सुने देने लगे क्यूँ की यही मुस्लिमों का चरित्र है |और न्याय की भी यही मांग है की अब जबकि भारत की किसी विदेशी  आक्रान्ता का शासन  नहीं है तो  हिंडून की समस्त संपत्तियां हिन्दुओं की वापस की जाएँ को आक्र्न्ताओं ने छीन  ली थी |

 आप सभी से अनुरोध है की इस पर अपने विचार दें पर दीपा शर्मा जी पर व्यक्तिगत टिप्पड़ी किये बिना |

और अंत में हिन्दू कुश पर्वत से हिन्दुमाहोदाधि तक का पूराक्षेत्र  हिशों का था जिस पर मुस्लिम आक्रान्ताओं के कब्ज़ा किया था तो अब कम से कम हमारे पूजास्थल तो हमे वापस कर ही दिए जाने चाहिए |

हो न्याय अगर तो आधा दो ,और उसमे भी यदि बाधा हो
तो दे दो केवल पांच ग्राम ,रखों अपनी धरती तमाम

हम वही ख़ुशी से खाएँगे,परिजन पर असि न उठाएंगे"

दुर्योधन वह भी दे न सका ,आशीष समाज की ले न सका
उल्टे हरी को बांधने चला ,जो था असाध्य साधने चला

जब नाश मनुज पर आता हैं ,पहले विवेक मर जाता हैं

"ज़ंजीर बढा अब साध मुझे ,हाँ हाँ दुर्योधन बाँध मुझे
ये देख गगन मुझमे लय हैं ,ये देख पवन मुझमे लय हैं
मुझमे विलीन झंकार सकल ,मुझमे लय हैं संसार सकल
अमरत्व फूलता हैं मुझमे ,संसार झूलता हैं मुझमे
उदयाचल मेरे दीप्त भाल ,भूमंडल वक्षस्थल विशाल
भुज परिधि बांध को घेरे हैं,मैनाक मेरु पग मेरे हैं
दीप्ते जो ग्रह नक्षत्र निकर ,सब हैं मेरे मुख के अन्दर
दृक हो तो दृश्य अखंड देख,मुझमे सारा ब्रह्माण्ड देख
चराचर जीव जग क्षर-अक्षर ,नश्वर मनुष्य सृजाती अमर
शत कोटि सूर्य शत कोटि चन्द्र ,शत कोटि सरित्सर सिन्धु मंद्र
शत कोटि ब्रह्मा विष्णु महेश ,शत कोटि जलपति जिष्णु धनेश
शत कोटि रुद्र शत कोटि काल ,शत कोटि दंड धर लोकपाल
ज़ंजीर बढा कर साध इन्हें ,हाँ हाँ दुर्योधन बाँध इन्हें
भूतल अतल पाताल देख ,गत और अनागत काल देख
यह देख जगत का आदि सृजन ,यह देख महाभारत का रण
मृतकों से पटी हुई भू हैं ,पहचान कहाँ इसमें तू हैं !!!


और अगर या नहीं दिया तो हमे कहना होगा


तो ले अब मैं भी जाता हूँ ,अंतिम संकल्प सुनाता हूँ  
 याचना नहीं अब रण होगा ,जीवन जय या की मरण होगा